भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति भवन देश भर से आए विशिष्ट अतिथियों का अभिनंदन करता है, और आपको भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विविधता की अनुभूति के लिए आमंत्रित करता है।
इस विशेष अवसर का आमंत्रण, पूर्वी भारत के चार राज्यों, बिहार, झारखंड, ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल की जीवंत कला परंपराओं से प्रेरित है। इस आमंत्रण को भारत के इन चार राज्यों की अनूठी विरासत व कलात्मक उत्कृष्टता दर्शाने के लिए अत्यंत कुशलता से तैयार किया गया है।
इस आमंत्रण में हाथ से बुना हुआ बॉक्स, बाँस का फोटो फ्रेम, सुंदर लोक चित्रकलाएं तथा विशेष रूप से डिज़ाइन किया गया ओढ़ना है। ये सभी वस्तुएं, इन राज्यों के शिल्पकारों के कौशल और रचनात्मकता की झलक प्रस्तुत करती हैं। हम आशा करते हैं कि यह आमंत्रण आपको इस विशेष अवसर पर आपकी उपस्थिति की याद दिलाता रहेगा।
सुनहरे रंग की सिक्की घास से बुना हुआ यह बॉक्स, बिहार की ग्रामीण महिला शिल्पकारों के उत्कृष्ट कला कौशल को दर्शाता है। इस सदियों पुरानी हस्तकला में, प्राकृतिक रेशों को कुशलतापूर्वक हाथ से बुनकर सुंदर और उपयोगी वस्तुएं बनाई जाती हैं।
यह फ्रेम झारखंड के आदिवासी हस्तशिल्पकारों द्वारा निर्मित है। झारखंड में बाँस से बुनाई की परंपरा बहुत पुरानी है। दरवाजे के रूप में बना यह फ्रेम, देश भर से आए अतिथियों को सहृदय आमंत्रित करने, तथा उनका भव्य स्वागत करने की राष्ट्रपति भवन की भावना को दर्शाता है।
इस फ्रेम को मधुबनी कलाकृतियों से सजाया गया है, और इसमें चार पूर्वी राज्यों की विशिष्ट लोक चित्रकलाएं प्रदर्शित हैं। इसके डिज़ाइन की यह विशेषता है कि इसे फोटो फ्रेम के रूप में पुनः उपयोग में लाया जा सकता है - यह फ्रेम विरासत और आधुनिकता का रोचक मिश्रण है।
800 वर्ष से अधिक प्राचीन, टिकुली चित्रकारी पटना, बिहार की पारंपरिक और पुनर्जीवित कला शैली है। इस कला में पारंपरिक और आधुनिक सामग्री का उपयोग किया जाता है। यह कला शैली प्रभावशाली चित्रात्मक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है। महिलाओं द्वारा लगायी जाने वाली ‘बिंदी’ से प्रेरित टिकुली कला प्राचीन सांस्कृतिक महत्व को वर्तमान शैली में प्रस्तुत करती है। इस कला से पटना के आस-पास के अनेक कलाकारों की आजीविका चलती है।
झारखंड के अमादुबी गांव से जुड़ी पैटकर चित्रकारी भारत की सबसे पुरानी आदिवासी परंपराओं में से एक है। पत्थरों, पत्तियों और छाल के प्राकृतिक रंगों के उपयोग से ये कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं। यह चित्रकारी पौराणिक कथाओं, रीति रिवाजों और आदिवासी जीवन की कहानियाँ बयान करती है।
तालपत्र चित्र - ओडिशा में ताड़ के पत्ते पर बने सूचीपत्र - को बड़ी सूक्ष्मता से, कालिख से उकेरा जाता है। इन परतदार कलाकृतियों से पौराणिक कथाओं, प्रकृति, और दैनिक जीवन की गाथाओं के बारे में पता चलता है। इस अनोखी कला को GI टैग मिलने की प्रक्रिया जारी है।
पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर के पटुआ समाज द्वारा प्रचलित बंगाल पट्टचित्र लोककथाओं और पौराणिक कथाओं पर आधारित है। यह कला सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, गहन रेखाओं और जीवंत रंगों के लिए जानी जाती है। यह आदिवासी कला शैली, ग्रामीण बंगाल की कथाकारों की परंपरा को आज भी संजोये हुए है।
मूल रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र से उत्पन्न, मधुबनी/मिथिला कला अपने बारीक और कलात्मक पैटर्न तथा प्रतीकों में छिपी गहराई के लिए जानी जाती हैं। पारंपरिक रूप से महिलाएं प्राकृतिक रंगों, टहनियों और माचिस की तीलियों से इन्हें तैयार करती हैं। इस लोक कला में जीवन, प्रकृति और पौराणिक कथाओं को प्रदर्शित किया जाता है।
इस विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए ओढ़ना पर हाथ से ब्लॉक प्रिंटिंग की गई है। इसमें पूर्वी लोक चित्रकला के कलात्मक तत्वों की झलक दिखाई देती है, जो तिरंगे के थीम में हैं। पारंपरिक रूपांकन जैसे कि 'मत्स्य', 'कमल' और 'बसंत'; ये सभी प्रकृति, समय और जीवन को दर्शाते हैं।
आगमन के समय अतिथियों का स्वागत पारंपरिक रूप से ओढ़ना पहनाकर किया जाएगा।